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Must shayri

किनारे पर तैरने वाली
लाश को देखकर
ये समझ आया...
बोझ शरीर का नही
साँसों का था

ज़िन्दगी में ना ज़ाने कौनसी बात "आख़री" होगी,
ना ज़ाने कौनसी रात "आख़री" होगी..
मिलते, जुलते, बातें करते रहो यार एक दूसरे से,
ना जाने कौनसी "मुलाक़ात" आख़री होगी.

Must shayri Must shayri Reviewed by Rakesh Kumar on September 24, 2014 Rating: 5

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